PUSHPA: (हिमांशु शर्मा): ‘आई डोंट लाइक टियर पुष्पा’, सिर्फ पुष्पा का नाम आने से ही राजेश खन्ना का बोला यह डायलॉग ऐसा हिट हुआ कि यह आज भी अक्सर लोगों की जुबान पर आ जाता है। अमर प्रेम नाम की यह फिल्म साल 1972 में रिलीज हुई थी जिसे शक्ति सामंत ने निर्देशित किया था।
यहां हम शक्ति साहब की उस फिल्म की बात करने नहीं जा रहे हैं बल्कि पुष्पा नाम के पीछे छिपी सफलता का राज जानने जा रहे हैं। अल्लू अर्जुन और रश्मिका मंदाना की फिल्म पुष्पा इन दिनों मनोरंजन जगत में काफी चर्चा बटोर रही है। बॉक्स ऑफिस पर अच्छे खासे पैसे बटोरने के बाद अब यह फिल्म ओटीटी पर भी आ चुकी है। करीब 200 करोड़ रुपए की लागत से बनी यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर 400 करोड़ रुपए की कमाई कर चुकी है। ओटीटी पर इसकी कमाई के आंकड़े अलग होंगे। एक लंबे समय के बाद बड़ी हिट फिल्म बॉलीवुड को मिली है। चार अलग-अलग भाषाओं में रिलीज हुई इस फिल्म ने हिंदी के दर्शकों को भी बेहद प्रभावित किया है। या यूं कहें कि हिंदी के दर्शक इस फिल्म से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं और इन्हीं हिंदी दर्शकों ने इस फिल्म को बड़ी हिट बनाने में बड़ी भूमिका निभाई। मूल रूप से दक्षिण भारतीय कलाकारों की जोड़ी इस फिल्म में नजर आई है और अल्लू अर्जुन की बॉलीवुड में यह पहली फिल्म है। अल्लू अर्जुन और रश्मिका मंदाना इन दिनों दक्षिण भारतीय फिल्म उद्योग के सबसे चमकीले चेहरों में से हैं। बॉलीवुड के दर्शक इनका लंबे समय से इंतजार कर रहे थे और पुष्पा में उन्हें यह जोड़ी देखने को मिल गई। पुष्पा की सफलता के पीछे इस जोड़ी का बड़ा दारोमदार रहा है। इसके अलावा कौन सी ऐसी बात है जो पुष्पा को बड़ी हिट बनाती है ?

इस सवाल का जवाब आपको फिल्म की कहानी में नहीं मिलेगा। फिल्म देखकर निकलने वाले दर्शकों में ज्यादातर का कहना है की कहानी में कोई बहुत खास बात नहीं है, लेकिन कहानी के बीच किरदारों को जिस तरह से ढाला गया है, वह लाजवाब है। यही वजह है कि फिल्म देखने के दौरान कहानी से ज्यादा किरदार के साथ दर्शक खुद को जुड़ा महसूस करता है। फिल्म का तीसरा सबसे मजबूत पहलू है इसके संवाद। फिल्म की कहानी एक ग्रामीण परिवेश के बीच घड़ी गई है और संवादों में जिस तरह का प्रयोग किया गया है वह लाजवाब है। फिल्म के डायलॉग से लेकर गानों तक अनूठे संवाद और नयापन ली हुई एक भाषा दर्शकों को सुनने मिलती है। यह दक्षिण भारतीय और हिंदी सिनेमा का फ्यूजन है।
वास्तव में यह फिल्म, फिल्मकारों के लिए भी एक सीख हो सकती है, क्योंकि यह अपने आप में फिल्म कारी का एक अनूठा नमूना ही है। 70- 80 के दशक में जिस तरह की कहानियों पर फिल्में बनती थी, कुछ कुछ वैसी ही कहानी के साथ दोबारा एक एंग्री यंग मैन को पुष्पा के माध्यम से जीवित करने की कोशिश फिल्मकार ने की है। इस कोशिश में फिल्मकार काफी सफल होते भी नजर आ रहे हैं। वास्तव में फिल्म पुष्पा ने अल्लू अर्जुन को भी लोकप्रियता के नेक्स्ट लेवल पर पहुंचा दिया।
तंग गलियों के एक कच्चे मकान में रहने वाला हीरो, जिसका पिता नहीं है। उसकी मां पर लोगों ने जुल्म किए हैं। हीरो, जो काम के नाम पर कुलीगीरी या मजदूरी करता है, लेकिन जिसके दिल में आसमान की ऊंचाइयां छूने की आग धधक रही है। इसी बीच फिल्में एक खूबसूरत हीरोइन की एंट्री होती है जो सीनेमाई मसाले में फ्लेवर का जबरदस्त तड़का लगाती है। खूबसूरत हीरोइन पहले ना-ना कहती है और फिर मुस्करा कर शर्माते हुए धीरे-से हां कह देती है। कुल मिलाकर फिल्म में हीरो का संघर्ष बाहुबली विलेन से है, जिसे निपटा कर हीरो को अपनी मां के आत्मसम्मान का बदला लेना है और अपनी हीरोइन को उसकी गंदी नजर और नियत से बचाना है। फिल्म में हीरो को ऐसे एंग्री यंग मैन के रूप में दिखाया गया है जो गुस्से से सब कुछ ध्वस्त कर सकता है।
कहानी में कुछ खास नया नहीं है, लेकिन यह फिल्म अपने आप में नए जमाने की फिल्म है। इसके डायलॉग नए जमाने के हैं। इसका हीरो भले किसी तंग बस्ती में रहता है, लेकिन एक नए जमाने का एंग्री यंग मैन है। उसके डायलॉग उसका स्टाइल हाव-भाव चलना बैठना उठना सब कुछ नया है, और यही नयापन वास्तव में पुष्पा की सफलता का असली राज है।