Film ANEK trailer release: (विशेष आलेख- अविनाश दास, लेखक और फिल्म निर्देशक): पिछले कुछ सालों से मैं वो जादू की चाबी खोज रहा हूं, जिसने फ़िल्मकार के तौर पर अनुभव सिन्हा का पूरी तरह कायांतरण कर दिया है। उत्तर-पूर्व के मसलों पर बनी उनकी फ़िल्म “अनेक” का ट्रेलर परसों रीलीज़ हुआ और “मुल्क” के बाद से हर फ़िल्म में वह अपना कैनवास बड़ा और बड़ा करते जा रहे हैं। दो दिन से मेरी तबीयत ढीली थी, तो मैंने आज सुबह “अनेक” का ट्रेलर देखा। उत्तर-पूर्व के मसले को सामने रखते हुए भारतीयता की खोज एक ज़रूरी लेकिन जोखिम भरा सिनेमाई कारनामा होगा और ट्रेलर से लग रहा है कि अनुभव ने पूरी शिद्दत से इसे कर दिखाया होगा।

वंचित अस्मिताओं का संघर्ष कहां जाकर राष्ट्र विरोधी होता है या नहीं होता है, इसके बारे में दो तरह का नज़रिया हो सकता है। एक नज़रिया तो ट्रेलर में ही एक किरदार बोल जाता है, “पीपुल्स वॉयस पांच साल में एक बार सुनी जा सकती है, रोज़-रोज़ नहीं सुनी जाएगी।” यह शासन का नज़रिया है, और शासन (स्टेट) के बारे में यूआर अनंतमूर्ति अपनी किताब “किस प्रकार की है यह भारतीयता” में लिखते हैं, “शासन अक्सर एक समस्या ही है। यह या तो आवश्यकता से अधिक होता है या शक्तिहीन होकर अराजकता का कारण बन जाता है। विडंबना यह है कि शासन का आवश्यकता से अधिक होना भी विरोध का कारण बन जाता है और अराजकता पैदा हो जाती है।” मेरे लिए यह देखना दिलचस्प होगा कि अनुभव सिन्हा उत्तर-पूर्व की अराजकता को कैसे देखते हैं।
हालांकि उत्तर और दक्षिण की भारतीयता को लेकर उनके मुख्य किरदार की टेक भाषा का परचा फाड़ते हुए फ़िलहाल पॉपुलिस्ट अप्रोच के साथ लग रही है, ”भारतीयता कैसे डिसाइड होती है सर? नॉर्थ इंडियन नहीं, साउथ इंडियन नहीं, ईस्ट इंडियन नहीं, वेस्ट इंडियन नहीं… सिर्फ़ इंडियन कैसे होता है आदमी?” फ़िल्म में यह पूरा संवाद किस तरह से व्याख्यायित हुआ है, “देखना ही होगा”।
तय है कि “अनेक” बहुत सारी बहसों को जन्म देने वाला है। मुझे इस फ़िल्म का बेसब्री से इंतज़ार है। फ़िलहाल आपलोग भी ट्रेलर देख लीजिए।